वुमन इम्पॉवरमेंट***

 बाई साहब, मुझे दो माह की छुट्टी चाहिए। मेरा आठवां माह चल रहा है। जजकी के



एक माह बाद फिर आजाऊंगी।" हमारी गृहसहायिका ने मेरी पत्नी से गुजारिश की। मैं पास ही समाचार पत्र पढ़ते हुए बैठा था।


मेरी पत्नी शुभांगी छूटते ही बोली,


"बसंती, तेरा दिमाग खराब है क्या जो छुट्टी मांग रही है। तुझे अच्छे से पता है कि मुझे सातवां महीना चल रहा है। मैं झाड़ू-पोछा और घर के अन्य काम नहीं कर सकती फिर भी तू छुट्टी मांग रही है।"



बेचारी बसंती अपना सा मुंह लेकर चुपचाप रह गई। पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा। बसंती के जाने के बाद मैं शुभांगी से बोला,


" जानू, तुम खुद तो ऑफिस से २६ सप्ताह की सवैतनिक छुट्टी लेकर बैठ गई और बसंती को मना कर रही हो। ये तो सरासर अन्याय है। आखिर वो भी महिला है। उसके भी तो कुछ अधिकार हैं।"


"ओफ्फो, बड़े बसंती के हिमायती बन रहे हो। ये बताओ उसको छुट्टी देकर घर के काम क्या इस हालत में मुझे करवाओगे?"



" जी नहीं, उससे कहा जा सकता है कि तुम अपनी जगह दो माह के लिए किसी और को काम पर लगवा दो।"


"और दो -दो को वेतन देना पड़ेगा उसका क्या?"


" जब तुम छब्बीस सप्ताह का वेतन घर बैठे ले सकती हो तो बसंती दो माह का क्यों नहीं?"


" आखिर वूमन इम्पावरमेंट" सभी महिलाओं के लिए है जी।


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